ये एक फोजी की करुण गाथा है,
जब वो युद्ध पर जाता है तो अपने साथी से बोलता है :
“साथी घर जाकर मत कहना,
संकेतो में बतला देना..
मेरा हाल मेरी बहना पूछे तो, सर उसका सहला देना
इतने पर भी न समझे तो, राखी तोड़ देखा देना !
“साथी घर जाकर मत कहना,
संकेतो में बतला देना..
मेरा हाल मेरे पत्नी पूछे तो, मस्तक को झुका लेना
इतने पर भी न समझे तो, मांग का सिन्दूर मिटा देना !
“साथी घर जाकर मत कहना,
संकेतो में बतला देना ..
मेरा हाल मेरी माँ पूछे तो, दो आंसू छलका देना
इतने पर भी न समझे तो, जलता दीप बुझा देना !
“साथी घर जाकर मत कहना,
संकेतो में बतला देना..
मेरा हाल मेरे बूढ़े पिता पूछे तो, हाथो को सहला देना
इतने पर भी न समझे तो, लाठी तोड़ दिखा देना ...!
जब वो युद्ध पर जाता है तो अपने साथी से बोलता है :
“साथी घर जाकर मत कहना,
संकेतो में बतला देना..
मेरा हाल मेरी बहना पूछे तो, सर उसका सहला देना
इतने पर भी न समझे तो, राखी तोड़ देखा देना !
“साथी घर जाकर मत कहना,
संकेतो में बतला देना..
मेरा हाल मेरे पत्नी पूछे तो, मस्तक को झुका लेना
इतने पर भी न समझे तो, मांग का सिन्दूर मिटा देना !
“साथी घर जाकर मत कहना,
संकेतो में बतला देना ..
मेरा हाल मेरी माँ पूछे तो, दो आंसू छलका देना
इतने पर भी न समझे तो, जलता दीप बुझा देना !
“साथी घर जाकर मत कहना,
संकेतो में बतला देना..
मेरा हाल मेरे बूढ़े पिता पूछे तो, हाथो को सहला देना
इतने पर भी न समझे तो, लाठी तोड़ दिखा देना ...!
No comments:
Post a Comment